आज सोशल मीडिया में दिनभर बेरोजगार दिवस चर्चित रहा। यह देश के युथ का संदेश मात्र है, एक गुहार है कि हमारी फरियाद सुन लो।
कुछ लोग इसे राजनीति से भी जोड़ रहे है पर ये बिल्कुल गलत है, छात्रों को जो तकलीफ है वो उसे जाहिर कर रहे है, उनका एक ही मकसद है रोजगार, बाकी किसी भी पार्टी से उनका कोई लेना देना नहीं। ये ही वो युवा है जिन्होंने अच्छे दिनों के उम्मीद में 70 साल पुराने पार्टी को उखाड़ फेंका और आपको गद्दी में बिठाया है। आपसे उम्मीदें है इसलिए बिठाया है, कांग्रेस पसंद नही था इसलिए हटाया था, छात्र शक्ति को कभी कम न आंकें, इसमें बहुत पावर है।
और कुछ शब्द उन बिन पेंदी के लोटो को भी कहना चाहूंगा जिनका कहना है सभी को सरकारी नौकरी नही दी जा सकती, या लोग कामचोरी और घूसखोरी करने सरकारी जॉब करने आते है।
पहली बात तो यह कि करोड़ो वेकैंसी की कोई डिमांड ही नही कर रहा यहां, यद्यपि वेकैंसी का ग्राफ 2013 के बाद से drastically गिर रहा है, फिर भी छात्रों की डिमांड जो पोस्ट आये है उनको समय पर भरने की है न कि 2 करोड़ रोजगार देने की जो शायद किसी नेता का जुमला वादा था।
दूसरी बात, अभी आप सभी कोरोना काल से जूझ रहे हैं, आप घर पर बैठें थे तब अधिकांश सरकारी कर्मचारी ही जान जोखिम में डालकर देश सेवा में लगे हुए थे। बॉर्डर पर गोली कोई प्राइवेट जॉब वाला नहीं खा रहा हमें सुरक्षित रखने के लिए। देश को जो आय मिलती है उसका अधिकांश हिस्सा कर के रूप में ये कर्मचारी ही वसूलते हैं। अगर कोई गरीब गंभीर रूप से बीमार होता है तो सरकारी अस्पताल ही काम आता है। कोई गरीब छात्र पढ़ना चाहता है तो KVS / IIT ही काम आता है। दिल्ली के सरकारी विद्यालयों का रिजल्ट और फैसिलिटी प्राइवेट से कही बेहतर है।
बात सिर्फ मैनेजमेंट की है, जब सरकार चाह ले तो सब संभव है, नए जनरेशन के युवक सरकारी दफ्तरों में जबरदस्त काम कर रहे है। अगर काम स्लो है तो कुछ पुराने कर्मचारियों की वजह से। और हां जॉब लेने के बाद भी समय समय पर डिपार्टमेंटल परीक्षाएं भी होती है, पहले कन्फर्मेशन के लिए और फिर प्रोमोशन के लिए। अयोग्य होने का कोई सवाल ही नही बनता । कोई सरकारी नौकरी लेने वाला सिर्फ मेरिट से आता है, चापलूसी या जी हुजूरी कर के नही। लाखो करोड़ो की भीड़ से निकल कर कुछ हजार ही सरकारी पद में चयनित होते है।
खैर जिन्हें इन सब के बारे में जरा भी पता नही रहता वो ही ज्यादा शोर शराबा करते हैं।
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